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नज़राना इश्क़ का (भाग : 38)



निमय अब तक पूरी तरह तैयार हो चुका था, जाह्नवी ने उसे खाना खिलाने के साथ ही दवाई भी खिला दी थी। दोनो आपस में बातें करते हुए विक्रम और फरी के आने का इंतजार करने लगे। थोड़ी ही देर बाद एक हल्की नीली-श्वेत रंग की गाड़ी उनके घर के सामने रुकी, फरी और विक्रम दोनो एक साथ बाहर निकले, दोनों के चेहरों पर मुस्कान खिली हुई थी। श्रीराम और जानकी ने उन दोनों का खुले हृदय से स्वागत किया, फरी ने श्रीराम को झुककर प्रणाम किया, उन्होंने मुस्कुराते हुए आशीर्वाद दिया, पर जैसे ही फरी जानकी को प्रणाम करने झुकी उन्होंने उसे उठाकर गले से लगा लिया, विक्रम ने भी दोनों को हाथ जोड़कर प्रणाम किया।

"चलो आखिरकार हमारी कुटिया में कदम पड़ ही गए जनाब के!" जाह्नवी मुस्कुराती हुई बोली।

"हाँ बेटा! इससे पहले भी तुम दोनों कई बार आये पर दरवाजे के भीतर आते ही नहीं थे, हमें तो तुम्हारा धन्यवाद अदा करने तक का ठीक से अवसर नहीं मिला।" इससे पहले विक्रम मुँह फुलाये कुछ कहता, श्रीराम ने सौम्य स्वर में कहा।

"जी इसकी कोई जरूरत नहीं है अंकल जी! दोस्त अगर दोस्त के काम न आ सके तो दोस्ती कैसी..! मैंने तो सिर्फ अपनी दोस्ती निभाई है।" विक्रम, निमय और जाह्नवी को कनखियों से देखता हुआ सिर झुकाए हुए बोला।

"बड़े नेक विचार हैं आपके…!" श्रीराम मुस्कुराते हुए बोले।

"बस करिये शर्मा जी, आते ही शुरू हो गए आप? थोड़ा बैठने दीजिये, फिर आराम से बातें कीजियेगा। अभी आपको काम पर भी निकलना होगा न!" इससे पहले श्रीराम जी आगे कुछ और बोलते, जानकी जी ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, ये देखते ही निमय और जाह्नवी की हँसी छूट गयी, वे अपने मुँह पर हाथ रख अपनी हँसी दबाने की कोशिश करने लगे।

"जो आज्ञा शरमाईन जी!" श्रीराम ने मुँह बनाते हुए कहा। यह सुनते ही उन सभी की हंसी छूट गयी।

"आओ बेटा! आप लोग बैठो, मैं खाने पीने के लिए कुछ लाती हूँ।" कहते हुए जानकी जी किचन की ओर बढ़ी।

"बैठ जाओ फरु! इतना शर्माना भी ठीक नहीं..!" जाह्नवी हंसते हुए उसके कंधे पर दबाकर बैठाते हुए कहा।

"अं… ह..! हाँ!" फरी सिर झुकाते हुए बैठ गयी, निमय उसके ठीक सामने विक्रम के बगल में बैठा हुआ था, उसे देखकर जाने क्यों वह शर्म से लाल हुई जा रही थी।

"अरे यार शादी के लिए लड़का थोड़ी न देखने आयी हो, अब तो शर्माना बन्द करो..!" जाह्नवी उसकी टांग खिंचाई करने में लग गयी, यह सुनकर फरी बुरी तरह झेंप गयी।

"न..नहीं तो..!" फरी को समझ नहीं आया कि वह क्या बोले।

"अच्छा बच्चों आप लोग आपस में बातें करो, खाना खाकर ही जाना ठीक न! मुझे तो अब काम पर निकलना होगा, आज तो थोड़ा लेट भी हो गया।" कहते हुए मिस्टर शर्मा वहां से चले गए।

"जानू जा मम्मी की थोड़ी हेल्प करा दे ना!" निमय धीमे स्वर में खुसफुसाया। जिसके जवाब में जाह्नवी ने मुँह बनाया, पर फिर बिन कुछ कहे आगे बढ़ गयी।

"आंटी जी रहने दीजिए, इतना ज्यादा मेहनत करने की क्या जरूरत है? हम तो जस्ट खाकर ही चले हैं! बताओ न फरी…!" विक्रम ने आवाज लगाया, फिर फरी की ओर देखने लगा।

"हं… हां!" फरी जैसे नींद से जागते हुए बोली।

"क्या हुआ है आज तुम्हें?" विक्रम को उसका बिहेव थोड़ा अजीब लगा, जैसे वह यहां कम्फ़र्टेबल फील नहीं कर रही हो।

"कुछ तो नहीं!" विक्रम की शंकाओ को भांपते हुए फरी तपाक से बोली।

"तू कुछ बात क्यों नहीं कर रहा निम्मी?" विक्रम, निमय की ओर घूमते हुए पूछा।

"क्या…! अरे बोल तो रहा हूं यार!" निमय उसकी ओर देखते हुए बोला।

"नहीं! आप नहीं कर रहे हो।" फरी हँसते हुए बोली।

"तुम में से कोई ढंग से बात नहीं कर रहा है! अब पहले ये खाओ फिर बातें करना..! मेरे हाथ की बनी स्पेशल चॉकलेट आईसक्रीम!" जाह्नवी ने पलके झुकाते हुए, खुद की तारीफ करने के स्वर में कहा।

"वाह…! गर्मी में आइसक्रीम… वो भी घर की बनी..! लाजवाब..!" विक्रम मुस्कुराते हुए बोला।

"आपके हाथों में तो जादू है जाह्नवी!" फरी ने स्वाद चखते हुए कहा।

"सब यही कहते हैं, बस एक जानवर है जिसको मेरा बनाया पसंद नहीं आता!" जाह्नवी ने निमय को बूरी तरह घूरते हुए कहा, यह देखकर फरी का मुंह लटक गया।

"क्या हुआ?" जाह्नवी ने उससे पूछा।

"कुछ नहीं!" फरी अपने भाव छिपाने की कोशिश करने लगी।

"हाहाहा..! मैं तो मजाक कर रही थी यार! तुम खाओ..!" जाह्नवी जोरों से हँसते हुए बोली।

"क्या यार आप भी! जान ले लो अपने दोस्त की!" फरी ने बुरा सा मुंह बनाया।

"ना जी ना! दोस्त तो जान होते हमारी!" जाह्नवी ने अजीब ढंग से मुस्कुराते हुए कहा।

"मेरी लाइंस कॉपी मार ली तुमने..!" विक्रम ने मुंह बनाते हुए कहा। "मैं कॉपीराइट क्लेम करूंगा..!"

"पर ये लाइंस तो मेरी हैं..! मैं तुम दोनों पर कॉपीराइट केस करूंगा..!" निमय ने बुरा सा मुंह बनाया।

"हे कृष्णा! पहले आप तीनों तय कर लो ये किसकी लाइंस हैं, नहीं तो इसे मेरे नाम कर दो..!" फरी हँसते हुए बोली, अब वह खुद को काफी सहज महसूस कर रही थी।

"हें…!" विक्रम और निमय दोनो का मुंह बन गया।

"हां!" फरी ने कंधे उचकाए।

"ओम भट्ट स्वाहा… फरू फरी फाहा..!" जाह्नवी ने बड़े गंभीरता पूर्वक कहा! यह सुनते ही उन दोनो की हंसी छूट गई।

"ये क्या था?" फरी ने गंदा सा मुंह बनाया। "जानी दुश्मन..!"

"मंत्र था मंत्र…!" जाह्नवी हँसते हुए बोली, तभी उसे उसकी मम्मी ने बुला लिया, वह किचन की ओर भागी, फरी भी उसके साथ ही उठकर चली गई। अब वहां बस निमय और विक्रम ही रह गए थे।

"कैसा फील कर रहा है अब?" विक्रम ने उससे पूछा।

"पहले से काफी बेहतर, जल्दी ही पूरा सही हो जाऊंगा!" निमय ने हौले से मुस्कुराते हुए कहा।

"मैं उस बारे में नहीं पूछ रहा!" विक्रम ने अपने शब्दों पर अधिक जोर दिया।

"मैं देख रहा हूं वह अब पहले से ज्यादा खुश रहती है, तुम्हारे लिए काफी चिंता भी करती है, क्या तुम महसूस कर रहे हो? उसकी खुशी तुमसे है!" विक्रम ने धीमें से उसके कान में कहा।

"नहीं..!" निमय ने शांत स्वर में कहा, यह सुनकर विक्रम को हैरानी हुई। "उसकी खुशियां तुमसे हैं विक! तुम जैसा भाई और परिवार पाकर वह खुश है, मैं तो बस मिलने के बाद से ही…!" निमय ने धीमे स्वर में कहा।

"पर वह तुम्हारे साथ रहना चाहती है, इसका मतलब उसके दिल में कुछ तो चल रहा है निम! तुम्हें उसके दिल में झांकना होगा। मैं शायद दुनिया का पहला ऐसा भाई हूं जो ऐसा कह रहा हो, पर सच यही है कि मैं चाहता हूं तुम दोनो हमेशा साथ रहो..!" विक्रम ने अपनी बात रखी।

"हूं..!" निमय ने मौन सहमति जताई।

"क्या खुसर फुसर हो रहा है महानुभावों..!" दोनो की निगाहें आवाज की दिशा में घूम गई। जाह्नवी हाथ में थाल लिए उनकी ओर आते हुए बोली, फरी भी उसके पीछे पीछे चली आ रही थी, उसके हाथ में भी थाल था, दोनो ने थाल को टेबल पर रख दिया। "ये लीजिए गर्मी में ठंडा खाने के बाद गरमा गरम कचौड़ी..!"

"ये किसके लिए?" विक्रम ने आंखें चौड़ी करके पूछा।

"मेरे लिए..!" कहते हुए जाह्नवी एक कचौड़ी उठाकर खाने लगी।

"जानी हर समय ऐसा करना सही नहीं होता बेटा! बैठो तुम लोग, मैं ठीक से खाना लगा देती हूं।" पीछे से जानकी जी की आवाज आई, उन्होंने चारों के लिए खाना लगा दिया। सभी थोड़ी ही देर में खाना खा चुके थे।

"बाप रे! आज तो कुछ ज्यादा ही खा गया.. पता ही न चला!" विक्रम अपने पेट की ओर देखता हुआ बोला। तभी उसका फोन घनघनाने लगा।

"हां! ठीक है पापा, बस जल्दी ही पहुंचता हूं।" विक्रम मोबाइल काम से लगाता हुआ बोला।

"क्या हुआ बेटा?" जानकी ने बड़े प्यार से पूछा।

"कुछ नहीं आंटी जी बस कम्पनी में अर्जेंट मीटिंग है वहां जाना पड़ेगा!" कहते हुए उसने फरी की ओर देखा।

"ठीक है तुम जाओ, और फरी यहीं रहेगी बाद में चली जायेगी।" जानकी जी के कुछ बोल पाने से पहले ही जाह्नवी बोली।

"हां बेटा आज बिटिया को यहीं रहने दो..!" जानकी जी ने मुस्कुराकर कहा।

"अच्छे से जाना! अपना ख्याल रखना।" सभी ने एक स्वर में कहा, विक्रम तेजी से बाहर चला गया।

क्रमश:....


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2 Comments

Pamela

15-Feb-2022 01:32 PM

Very nicely written

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Thank you so much ❤️

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